Sambhaji Maharaj in hindi - GyaanBhandar
संभाजी भोंसले -
संभाजी भोंसले (14 मई 1657 - 11 मार्च 1689) मराठा साम्राज्य के दूसरे शासक थे। वह वीर छत्रपति शिवाजी महाराज के सबसे बड़े बेटे थे, जो मराठा साम्राज्य के संस्थापक और उनकी पहली पत्नी साईबाई थी । वह अपने पिता की मृत्यु के बाद दायरे के उत्तराधिकारी थे, और उन्होंने नौ साल तक शासन किया। संभाजी का शासन काफी हद तक मराठा साम्राज्य और मुगल साम्राज्य के साथ-साथ अन्य पड़ोसी शक्तियों जैसे कि सिद्धियों, मैसूर और गोवा में पुर्तगालियों के बीच चल रहे युद्धों द्वारा आकार दिया गया था। 1689 में, संभाजी को मुगलों द्वारा पकड़ लिया गया, उन पर अत्याचार किया गया और उन्हें मार डाला गया, इसमें मुग़ल उनके भाई राजाराम द्वारा सफल हुए।
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संभाजी महाराज का जन्म 14 मई, 1657 में पुरंदर किले पर हुआ था। 2 साल की उम्र में ही उनकी मां की मृत्यु हो गई थी। फिर उनकी देखभाल उनकी दादी यानी जीजा बाई ने कि थी । संभाजी महाराज बहुत ही बुद्धिमान व्यक्ति थे। छत्रपति संभाजी 9 वर्ष की अवस्था में पुण्यश्लोक छत्रपति श्री छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रसिद्ध आगरा यात्रा में भी वे साथ में गए थे। वे बहुत कम उम्र में ही 13 तरह की भाषाएं सीख गए थे। उन्होंने छोटी सी उम्र में ही कहीं शास्त्र भी लिख डाले थे, घुड़सवारी, तीरंदाजी, तलवारबाजी, यह सब तो मानों जैसे इनके बाएं हाथ का खेल था।
जब वह आगरा की यात्रा पर थे तब , छत्रपति शिवाजी महाराज के महाराष्ट्र वापस लौटने पर मुगलों से समझौते के फलस्वरूप, संभाजी मुगल सम्राट द्वारा राजा के पद तथा पंच हजारी से विभूषित हुए। उनको यह नौकरी मान्य नहीं थी। किंतु हिंदूवादी स्वराज्य स्थापना की शुरू के दिन होने के कारण और पिता के आदेश के पालन हेतु केवल 9 साल के उम्र में ही इतना जिम्मेदारी और अपमानजनक कार्य उन्होंने धीरज से किया था।
पराक्रमी होने के बावजूद भी उन्हें अनेक लड़ाईऔ से दूर रखा गया था। स्वभावत: संवेदनशील रहने वाले संभाजी राजे उनके पिता शिवाजी महाराज के आज्ञा अनुसार मुगलों को जा मिले, ताकि वे उन्हें गुमराह कर सकें। क्योंकि उसी समय मराठा सेना दक्षिण दिशा के दिग्विजय से लौटी थी, और उन्हें फिर से जोश में आने के लिए समय चाहिए था।
जब वह आगरा की यात्रा पर थे तब , छत्रपति शिवाजी महाराज के महाराष्ट्र वापस लौटने पर मुगलों से समझौते के फलस्वरूप, संभाजी मुगल सम्राट द्वारा राजा के पद तथा पंच हजारी से विभूषित हुए। उनको यह नौकरी मान्य नहीं थी। किंतु हिंदूवादी स्वराज्य स्थापना की शुरू के दिन होने के कारण और पिता के आदेश के पालन हेतु केवल 9 साल के उम्र में ही इतना जिम्मेदारी और अपमानजनक कार्य उन्होंने धीरज से किया था।
पराक्रमी होने के बावजूद भी उन्हें अनेक लड़ाईऔ से दूर रखा गया था। स्वभावत: संवेदनशील रहने वाले संभाजी राजे उनके पिता शिवाजी महाराज के आज्ञा अनुसार मुगलों को जा मिले, ताकि वे उन्हें गुमराह कर सकें। क्योंकि उसी समय मराठा सेना दक्षिण दिशा के दिग्विजय से लौटी थी, और उन्हें फिर से जोश में आने के लिए समय चाहिए था।
छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद, स्वराज टूट गया था। लेकिन इस स्थिति में संभाजी महाराज ने स्वराज्य की जिम्मेदारी संभाली। कुछ लोगों ने संभाजी महाराज के भाई राजा राम को सिंहासन पर बैठाने का प्रयत्न किया था। किंतु सेनापति राव मोहिते के रहते वे कामयाब नहीं हुए | संभाजी महाराज का सलाहकार और मित्र कवी कलश था | जिस पर वह बहुत विश्वास करते थे |
16 जनवरी 1681 को संभाजी महाराज का राज्याभिषेक हुआ। उन्होंने अन्नाजी दत्तो और मोरोपंत पेशवा को उदार हृदय से क्षमा कर दिया एवं उन्हें अष्टप्रधान मंडल में रखा। हालांकि कुछ समय बाद, अन्नाजी दत्तो और मंत्रियों ने हीं फिर से संभाजी राजे के खिलाफ साजिश रची और राजा राम का राज्याभिषेक की योजना की थी । संभाजी राजे ने स्वराज्य द्रोही अन्नाजी दत्तो और उनके सहयोगी यों को हाथी के पांव से कुचलवा डाला था ।
1689 तक स्थितियां बदल चुकी थी। मुकर्रम खान के अचानक आक्रमण से मुगल सेना महल तक पहुंच गई, और संभाजी के साथ कवि कलश को भी बंदी बना लिया। एवं उन दोनों को कारागार में डाला गया, और उन्हें इस्लाम अपनाने को विवश किया गया। दोनों को चैन से जकड़ कर हाथी के होदे से बांधकर औरंगजेब के कैंप तक ले जाया जाता था जोकि अकलुज में था। उसके बाद वहां उन दोनों को तहखाने में भी डालने का आदेश दिया गया था। इतनी यातनाओ के बाद भी हार ना मानने पर संभाजी और कलश को कैद से निकाल कर उन दोनों को घंटी वाली टोपी पहना दी गई एवं उनका काफी अपमान भी किया गया था।
औरंगजेब ने कहा कि अगर वह अपना धर्म परिवर्तन कर लेते हैं तो संभाजी और उनके मित्रों को माफी मिल जाएगी। संभाजी ने इस बात से साफ इनकार कर दिया। फिर संभाजी ने अपने ईश्वर को याद किया और कहने लगे कि धर्म के भेद को समझने के बाद वह अपना जीवन बार बार और हर बार राष्ट्र को समर्पित करने को तत्पर है। अर्थात संभाजी औरंगजेब से बिल्कुल हार नहीं माने।
इसके बाद औरंगजेब ने गुस्से में उनको कई पीड़ा दी यातनाऐं दी उनकी चमड़ी को उधेड़ दी, नाख़ून उखाड़ दिए, उनकी आँखों में गर्म सरिये भी डाले ताकि वे अपना धर्म बदल दे लेकिन संभाजी महाराज ने हार नहीं मानी |
इन सब के अलावा औरंगजेब ने क्रोधित होकर संभाजी के घाव पर नमक छिड़काया और उन पर बहुत अत्याचार भी किए। परंतु संभाजी ने बिल्कुल भी औरंगजेब के आगे सर नहीं झुकाया।
इसी तरह कई तरह की पीड़ा पहुंचाने के बाद ओरंगजेब ने हार मान ली और उनको कैद से बाहर निकलवाया | उसने संभाजी से कहा की मेरे चार बेटे है, उनमे से कोई एक भी तुम्हारे जैसा होता तो में पुरे हिन्दुस्थान पर राज करता | और इसके बाद 11 मार्च 1989 को उनका सर धड़ से अलग कर दिया गया था और इस प्रकार उनकी मृत्यु हुई थी।
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