Babar Badshah history in hindi - GyaanBhandar

बाबर -     बाबर मुगल साम्राज्‍य का संंस्‍थापक था, बाबर ने मुगल वंश केे साथ ही पद-पादशाही की स्‍थापना भी की थी, बाबर का पूरा नाम ज़हीर-उद-दीन मोहम्मद बाबर (Zahir-ud-din Mohammad Babur ) था । बाबर सुन्नी इस्लाम को मानने वाला था। 

Babur

बाबर का जन्म -
     बाबर का जन्म 14 फरवरी, 1483 को ट्रांसआक्सियाना (Transoxania-वर्तमान मध्य एशिया का एक क्षेत्र) की एक मामूली सी रियासत फ़रगना ( Fergana Valley-जो अब उज्बेकिस्तान में है) में हुआ था ।

      बाबर के पिता जिनका नाम उमरशेेख मिर्जा - II था। वह एक छोटेे राज्‍य के शासक थे। बाबर की माँ का नाम कुतलुग निगार खानम था। बाबर उमर शेख मिर्जा का सबसे बड़ा पुत्र था। बाबर का परिवार चगताई तुर्क जाती का था जो बाद में मुग़ल नाम से प्रसिद्ध हुआ। 

प्रारम्भिक जीवन -
      बाबर अपने पिता की मृत्यु के बाद  8 जून 1494 ई० में माबरा उन्‍नहर की एक छोटी-सी रियासत फरगना का शासक बना । जब वह शासक बना तब उसकी उम्र मात्र 11 बर्ष 4 माह की थी बाबर ने फरगना में अपना राज्‍यभिषेक अपनी दादी ऐसान दौलत बेगम के सहयोग से करावाया था |


      किन्तु फरगना का शासक बनने के लिए बाबर को काफी संघर्ष करना पड़ा था। मंगोल खान और तैमूर राजकुमार पहले से ही फरगना की गद्दी पर नजर लगाए हुए थे। यहाँ तक कि बाबर के पिता जो समरकन्द के शासक बनने के लिए काफी प्रयत्न कर चुके थे। वहा का सुल्तान अहमद मिर्जा भी फरगना को हथियाना चाहता था।
       इन बाहरी चुनौतियों के साथ-साथ बाबर को अपने ही कुलीनों के असंतोष का सामना भी करना पड़ा। किन्तु इस राजवंशीय युद्ध में परिवार के झगड़ों और बाहरी शक्तियों से निपटने के लिए जिन सैन्य गुणों की आवश्यकता थी, वे गुण बाबर में मौजूद थे। यही कारण था कि संघर्षों और विपत्तियों के बावजूद बाबर ने समरकन्द पर दो बार जीत हासिल की।

     बाबर सन 1497 तथा 1501 में समरकन्द का शासक बनने में सफल हुआ। किन्तु बाबर का समरकन्द के शासक के रूप में अधिकतर समय युद्ध करने और संधियाँ स्थापित करने में ही बीता। बाबर ने 1507 ई० में बादशाह की उपााधि धारण की थी । बादशाह की उपाधि इससे पहले किसी भी  तैमूर शासक ने धारण नहीं की थी। 

बाबर की पत्नियां  और संताने  -
       बाबर की 9 पत्नियाँ थीं-
  • महम बेगम (बाबर के समय मुग़ल साम्राज्य की रानी और बादशाह बेगम)
  • आयशा सुल्तान बेगम
  • मासूमा सुल्तान बेगम
  • जैनाब सुल्तान बेगम
  • बीबी मुबारिका
  • गुलरुख बेगम
  • दिलदार बेगम
  • गुलनार अगाचा
  • नजरुल आगाचा

बाबर की 17 सन्तानें हुईं थी जिनमें से सबसे बड़ा बेटा हुमायूँ था, जो बाबर के बाद राजगद्दी पर बैठा । 


Humayun


भारत पर आक्रमण -
       बाबर ने भारत पर पहली बार हमला 1519 ई० में युसूफ जाई जाति के विरुद्ध किया था। भारत पर बाबर ने पॉच बार आक्रमण किया था। भारत में बाबर के आक्रमण के समय दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर सुल्तान इब्रहीम लोदी बैठा था। किन्तु इब्रहीम लोदी के कुछ कुलीन उसके नियंत्रण में नहीं थे। ये इब्रहीम लोदी के खिलाफ षड्यंत्र और साजिश की तलाश में थे।

बाबर काेे भारत पर आक्रमण करने का निमंत्रण पंजाब के शासक दौलत खॉ लोदी एवं मेवाड के शासक राणा सांगा ने दिया था। 

    बाबर को हिंदुस्तान पर शासन करने के लिए इब्रहीम लोदी से सीधे युद्ध में टक्कर देने के अलावा और उसके पास और कोई चारा नहीं था। क्योंकि इब्रहीम लोदी को बिना हराए दिल्ली पर कब्जा नहीं किया जा सकता था। बाबर और इब्रहीम लोदी की सेनाओं के बीच युद्ध पानीपत के मैदान पर 21 अप्रैल 1526 इसवीं के दिन हुआ। इस युद्ध में दिल्ली के सुल्तान इब्रहीम लोदी के पास सैन्य शक्ति बाबर के मुक़ाबले काफी ज्यादा थी।
   
पानीपत की लड़ाई -
     किन्तु पानीपत के इस युद्ध में इब्रहीम लोदी की सेना अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई वहीं दूसरी ओर बाबर की सेना संख्या में कम होने के बावजूद भी श्रेष्ठता के साथ लड़ी। इस लडाई में बाबर के साथ दो प्रमुख तोप निशानेबाज उस्‍ताद अली एवं मुस्‍तफा ने भाग लिया था, बाबर की उच्च सैन्य क्षमता और संगठन के कारण इब्रहीम लोदी की सेना को हार का मुंह देखना पड़ा।
           बाबर ने पानीपत के युद्ध में लोदी की अफगान सेनाओं के खिलाफ तोपों का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया। इस युद्ध में मेवाड़ के राजा राणा सांगा ने बाबर की सहायता नहीं की थी। इस युद्ध में इब्रहीम लोधी की मृत्यु हो गयी। दिल्‍ली की राजगद्दी पर बाबर 27 अप्रैल 1526 को बैठा था। 


Panipat ladai


बाबर और राजपूत -

         दिल्ली की राजगद्दी पर बैठने के बाद बाबर के लिए सबसे बड़ा खतरा राजस्थान के राजपूतों खासतौर से मेवाड़ के राणा सांगा से थे। राणा सांगा ने बाबर के हिंदुस्तान पर आक्रमण करने के समय सोचा था कि बाबर वापस काबुल लौट जाएगा। किन्तु बाबर के दिल्ली में रुक जाने के कारण राणा सांगा की महत्वकांक्षाओं पर ठेस लगी। 
    उधर बाबर भी इस बात से परिचित था कि जब तक राणा सांगा की शक्ति को खत्म नहीं किया जाएगा दिल्ली पर मुगलों के शासन को खतरा बना रहेगा। बाबर के सेनापति के द्वारा राजपूतों की वीरता के बखान सुनकर बाबर की सेना में निराशा तो हुई किन्तु बाबर ने अपने ओजस्वी और धार्मिक भाषण के द्वारा उन्हे युद्ध के लिए फिर से तैयार कर दिया। 

   पहली बार बाबर ओर राणा सांगा के बीच खानवा की लडाई 16 मार्च 1527 ई० को हुई थी। इस युद्ध में बाबर एक बार फिर से जीत गया। इस लडाई काेे जीतने के बाद बाबर ने गाजी की उपाधि धारण की थी
मेवाड़ की राजपूत सेना को खानवा के युद्ध में बहुत नुकसान उठाना पड़ा। इसी प्रकार बाबर ने 1528 में चँदेरी के युद्ध में मालवा के मेदिनी राय को भी हराकर राजपूत शक्ति को निष्क्रिय कर दिया।





बाबर की मृत्यु -
        बाबर ने 1526 इसवीं से लेकर अगले चार वर्षों तक हिंदुस्तान में सैन्य अभियानों के जरिये कई जीतें हासिल कीं। किन्तु शासन का सुख भोगने के लिए वह अधिक दिनों तक जीवित नहीं रह सका। घाघरा नदी के किनारे हुआ युद्ध उसके जीवन का अंतिम युद्ध माना जाता था। 
      बाबर की तबीयत जल्द ही बिगड़ गयी। बीमारी के कारण 47 वर्ष की आयु में  26 दिसंबर 1530 इसवीं को बाबर की आगरा में मृत्यु हुई। बाबर के शव काेे प्रारम्‍भ में आगरा के आरामबाग में दफनाया गया बाद मेंं काबुल में उसके उसके द्वारा चुने हुऐ स्‍थान पर दफनाया गया था। 


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