Prithviraj Chauhan - ( prithviraj chauhan history in hindi । पृथ्वीराज चौहान इतिहास )

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Prithviraj Chauhan 


दोस्तों आज हम आपके साथ शेयर कर रहे है  Prithviraj Chauhan - ( prithviraj chauhan history in hindi । पृथ्वीराज चौहान इतिहास )

भारत की भूमि पर अनेक योद्धाओं का जन्म हुआ है। हमारे इतिहास ने इन योद्धाओं को वीरगति से नवाजा, सदियां बीतने के बाद आज भी इन्हें शूरवीर ही माना जाता है। अपने दुश्मन को धूल चटाकर जीत हासिल करने वाले इन योद्धाओं ने कभी अपने प्राणों की परवाह नहीं की। ऐसे ही शुरवीर योद्धा के बारे में आज हम आपको बताने वाले है।  इतिहास

हम बात कर रहे है पृथ्वीराज चौहान की वह एक ऐसे शूरवीर योद्धा थे, जिनके साहस और पराक्रम के किस्से भारतीय इतिहास के पन्नों पर स्वर्णिम अक्षरों में लिखे गए हैं। वे आर्कषक कद-काठी के सैन्य विद्याओं में निपुण योद्धा थे। जिन्होंने अपने अद्भुत साहस से दुश्मनों को धूल चटाई थी। तो आइए जानते हैं इतिहास के इस महान योद्धा के जीवन के बारे में – Prithviraj Chauhan - ( prithviraj chauhan history in hindi । पृथ्वीराज चौहान इतिहास )



Birth Of Prithviraj Chauhan - पृथ्वीराज चौहान का जन्म 


Prithviraj Chauhan - ( prithviraj chauhan history in hindi । पृथ्वीराज चौहान इतिहास )
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पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1166 में चौहान वंश में हुआ था। उनके पिता का नाम सोमेश्वर चौहान और मां का नाम कर्पूरदेवी था। ऐसा कहा जाता है कि वे उनके माता-पिता की शादी के कई सालों बाद काफी पूजा-पाठ और मन्नत मांगने के बाद जन्में थे । वह उत्तर भारत में 12 वीं सदी के उत्तरार्ध में अजयमेरु (अजमेर) और दिल्ली के शासक थे।पृथ्वीराज को 'राय पिथौरा' भी कहा जाता है। वह चौहान राजवंश के प्रसिद्ध राजा थे। वह दिल्ली पर शासन करने वाले आखिरी हिन्दू शासक थे

वह एक ऐसे शूरवीर योद्धा थे, जिनके साहस और पराक्रम के किस्से भारतीय इतिहास के पन्नों पर स्वर्णिम अक्षरों में लिखे गए हैं। वे आर्कषक कद-काठी के सैन्य विद्याओं में निपुण योद्धा थे। जिन्होंने अपने अद्भुत साहस से दुश्मनों को धूल चटाई थी।

पृथ्वीराज के पिता सोमेश्वर ने पृथ्वीराज के जन्म के बाद अपने पुत्र के भविष्यफल को जानने के लिए विद्वान् पंडितों को बुलाया। जहां पृथ्वीराज का भविष्यफल देखते हुए पंडितों ने उनका नाम “पृथ्वीराज” रखा।
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पृथ्वीराज चौहान का प्रारम्भिक जीवन - Early life of Prithviraj Chauhan



राज घराने में पैदा होने की वजह से बाल्यावस्था से ही उनका पालन-पोषण काफी सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण और वैभवपूर्ण वातावरण में हुआ था।


पांच वर्ष की आयु में, पृथ्वीराज ने अजयमेरु (अजमेर) में विग्रहराज द्वारा स्थापित “सरस्वती कण्ठाभरण विद्यापीठ” से (वर्तमान में वो विद्यापीठ ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ नामक एक ‘मस्जिद’ है) से शिक्षा प्राप्त की।जबकि युद्ध और शस्त्र विद्या की शिक्षा उन्होंने अपने गुरु श्री राम जी से प्राप्त की थी।

पृथ्वीराज चौहान बचपन से ही बेहद साहसी, वीर, बहादुर, पराक्रमी और युद्ध कला में निपुण थे। वह बिना देखे ही सिर्फ आवाज के आधार पर बाण चला सकते थे। वह छः भाषाओँ – संस्कृत, प्राकृत, मागधी, पैशाची, शौरसेनी और अपभ्रंश में निपुण थे। इसके अलावा उन्हें मीमांसा, वेदान्त, गणित, पुराण, इतिहास, सैन्य विज्ञान और चिकित्सा शास्त्र का भी ज्ञान था।


चंदबरदाई
चंदबरदाई 


बचपन में चंदबरदाई पृथ्वीराज चौहान के सबसे अच्छे दोस्त थे, जो उनके एक भाई की तरह उनका ख्याल रखते थे। आपको बता दें कि चंदबरदाई तोमर वंश के शासक अनंगपाल की बेटी के पुत्र थे, जिन्होंने बाद में पृथ्वीराज चौहान के सहयोग से पिथोरागढ़ का निर्माण किया था, जो दिल्ली में वर्तमान में भी पुराने किले के नाम से मशहूर है।
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Prithviraj Chauhan - पृथ्वीराज चौहान का शासन


जब वर्ष 1179 में पृथ्वीराज के पिता की एक युद्ध में मृत्यु हो गई थी, तब पृथ्वीराज ने 13 वर्ष की उम्र में अजमेर के राजगढ़ की गद्दी को संभाला था और एक आदर्श शासक की तरह अपनी प्रजा की सभी उम्मीदों पर खरे उतरे।
जब पृथ्वीराज चौहान केवल तेरह वर्ष के थे, तब उन्होंने गुजरात के पराक्रमी शासक भीमदेव को पराजित किया था।


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उनकी मां कर्पूरा देवी अपने पिता अनंगपाल की इकलौती बेटी थी, इसलिए उनके पिता ने अपने दामाद और अजमेर के शासक सोमेश्वर चौहान से पृथ्वीराज चौहान की प्रतिभा को भांपते हुए अपने सम्राज्य का उत्तराधिकारी बनाने की इच्छा प्रकट की थी, उसके बाद उनके नाना अनंगपाल की मौत के बाद पृथ्वीराज चौहान दिल्ली के राजसिंहासन पर बैठे और कुशलतापूर्वक उन्होंने दिल्ली की सत्ता संभाली और दिल्ली पर भी अपना सिक्का चलाया।
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जब पृथ्वीराज चौहान दिल्ली के राज-सिंहासन की गद्दी पर बैठे, तब उन्होंने किला राय पिथौरा का निर्माण कराया। एक आदर्श शासक के तौर पर उन्होंने अपने सम्राज्य को मजबूती देने के कार्य किए और इसके विस्तार करने के लिए कई अभियान चलाए और वे एक वीर योद्धा एवं लोकप्रिय शासक के तौर पर पहचाने जाने लगे।

अदूरदर्शी शासक पृथ्वीराज चौहान की सेना बहुत बड़ी थी, पृथ्वीराज की सेना में घोड़ों की सेना का बहुत अधिक महत्व था, लेकिन फिर भी हाथी सेना और सैनिकों की भी मुख्य भूमिका रहती थी। जिसके चलते पृथ्वीराज की सेना में 70,000 घुड़सवार सैनिक थे। जैसे-जैसे पृथ्वीराज युद्ध जीतते गए, वैसे-वैसे सेना में सैनिकों की वृद्धि होती गई। नारायण युद्ध में पृथ्वीराज की सेना में 2 लाख घुड़सवार सैनिक, पाँच सौ हाथी एवं बहुत से सैनिक थे।
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प्रेम कहानी - ( Prithviraj Chauhan )


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पृथ्वीराज चौहान के अद्भुत साहस और वीरता के किस्से हर तरफ थे, वहीं जब राजा जयचंद की बेटी संयोगिता ने उनकी बहादुरी और आर्कषण के किस्से सुने, और पृथ्वीराज का चित्र देखा तो उनके हृदय में पृथ्वीराज चौहान के लिए प्रेम भावना उत्पन्न हो गईं तब उसने मन ही मन यह वचन ले लिया कि वह पृथ्वीराज को ही अपना वर चुनेंगी। और वे चोरी-छिपे गुप्त रुप से पृथ्वी राज चौहान को पत्र भेजने लगीं।


दूसरी तरफ पृथ्वीराज चौहान भी राजकुमारी संयोगिता की खूबसूरती से बेहद प्रभावित थे और वे भी राजकुमारी की तस्वीर देखते ही उनसे प्रेम कर बैठे थे। जब रानी संयोगिता के बारे में उनके पिता राजा जयचंद को पता चला तो उन्होंने अपनी बेटी संयोगिता के विवाह के लिए स्वयंवर करने का फैसला लिया।

जयचन्द ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया था और इस यज्ञ के बाद ही संयोगिता का स्वयंवर होना था। जयचन्द अश्वमेधयज्ञ करने के बाद पुरे भारत पर शासन करने की इच्छा रखता था। जिसके विपरीत पृथ्वीराज ने जयचन्द का विरोध किया। क्युकी वह नहीं चाहते थे कि क्रूर और घमंडी राजा जयचंद का भारत में प्रभुत्व हो
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जयचंद, पृथ्वीराज के गौरव और उनकी आन से ईर्ष्या रखता था, विरोध के कारण राजा जयचंद के मन में पृथ्वी के प्रति घृणा और भी ज्यादा बढ़ गई थी, जिसके बाद उन्होंने अपनी बेटी के स्वयंवर के लिए देश के कई महान योद्धाओं को न्योता दिया, लेकिन पृथ्वीराज चौहान को अपमानित करने के लिए उन्हें न्योता नहीं भेजा, और उनका अपमान करने के लिए द्वारपाल के स्थान पर पृथ्वीराज की मूर्ति लगवा दीं।



दूसरी ओर जब संयोगिता को पता लगा कि, पृथ्वीराज स्वयंवर में अनुपस्थित रहेंगे, तो उसने पृथ्वीराज को बुलाने के लिये दूत भेजा। यह जानकर पृथ्वीराज ने कन्नौज नगर की ओर प्रस्थान किया।

स्वयंवर के दिन देश के कई बड़े-बडे़ राजा, अपने सौंदर्य के लिए पहचानी जाने वाली राजकुमारी संयोगिता से विवाह करने के लिए शामिल हुए, जब संयोगिता हाथ में वरमाला लिए उपस्थित राजाओं को देख रही थी, तभी   उनकी नजर द्धार पर स्थित पृथ्वीराज की मूर्ति पर पड़ी, उसी समय संयोगिता मूर्ति के समीप जाती हैं और वरमाला पृथ्वीराज की मूर्ति को पहना देती हैं। जिसे देखकर स्वयंवर में आए सभी राजा खुद को अपमानित महसूस करने लगे।


अपनी पुत्री की इस हरकत से क्षुब्ध जयचंद, संयोगिता को मारने के लिए आगे बढ़ा लेकिन उसी समय पृथ्वीराज महल में आते हैं और सभी राजाओं को युद्ध के लिए ललकार कर,  संयोगिता को ले कर इन्द्रपस्थ (दिल्ली का एक भाग ) की ओर निकल पड़े। लेकिन उनका यह प्रेम उनके लिए सबसे बड़ी गलती बन गया।
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पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गोरी - Prithviraj Chauhan & Muhammad Ghorii


पृथ्वीराज चौहान जिस समय अपने साम्राज्य का विस्तार कर रहे थे, उस समय वर्ष 1191 में मोहम्मद गोरी ने भारत पर आक्रमण कर दिया था। पश्चिम दिशा से गोरी अन्य साम्राज्यों को पराजित करते हुए बहुत से राज्यों का सर्वनाश कर रहा था, और जिस भी राज्य पर आक्रमण करता, उस राज्य के सभी नगरों को लुट लेता था और मन्दिरों को जला देता था। उस समय राज्यों की सभी स्त्रियों के बलात्कार किए गए, इस क्रूरता के कारण उन महिलाओं की स्थिति अति दयनीय हो चुकी थी। वो जिस किसी भी राजपूत को देखता, उसे मृत्युदंड दे देता था।
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मोहम्मद गोरी ( Muhammad Ghorii )
मोहम्मद गोरी ( Muhammad Ghorii )

पृथ्वीराज को जब इसके बारे में पता चला तो उनके बीच युद्ध हुआ जिसे तराइन का युद्ध भी कहते है, जिसमे गोरी पराजित हो गया था। वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद ग़ोरी को 16  बार पराजित किया था, लेकिन हर बार उन्होंने उसे जीवित ही छोड़ दिया था। 

वहीं पृथ्वीराज चौहान से इतनी बार हार जाने के बाद मुहम्मद ग़ोरी मन ही मन प्रतिशोध से भर गया था, वहीं जब संयोगिता के पिता और पृथ्वीराज चौहान के सख्त दुश्मन राजा जयचंद को इस बात की भनक लगी तो उनसे मुहम्मद ग़ोरी से अपना हाथ मिला लिया और दोनों ने पृथ्वीराज चौहान को जान से मारने के लिए षड़यंत्र रचा।
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मुहम्मद ग़ोरी और जयचंद दोनों ने मिलकर साल 1192  में अपने मजबूत सैन्य बल के साथ पृथ्वीराज चौहान पर फिर से तराइन के मैदान पर आक्रमण कर दियाइस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान अकेले पड़ गए थे, तब उन्होंने अन्य राजपूत राजाओं से मद्द मांगी लेकिन राजकुमारी संयोगिता के स्वयंवर में पृथ्वीराज चौहान द्धारा किए गए अपमान को लेकर कोई भी राजपूत शासक उनकी मदद के लिए आगे नहीं आया।

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वही षड्यंत्र के अनुसार राजा जयचंद ने पृथ्वीराज चौहान का भरोसा जीतने के लिए अपना सैन्य बल पृथ्वीराज चौहान को सौंप दिया। पृथ्वीराज राजा जयचंद की इस चाल को समझ नहीं पाए

जयचंद्र की धोखेबाज सैनिकों ने पृथ्वीराज चौहान की सैनिकों को मार दिया और पृथ्वीराज चौहान और उनके मित्र चंदरबदाई बंधक बना लिया और अपने साथ ले गए।
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जला दी आँख ( Prithviraj Chauhan ) 


मुहम्मद ग़ोरी के अंदर पृथ्वीराज के प्रति बहुत क्रोध था, इसलिए बंधक बनाने के बाद पृथ्वीराज चौहान को उसने कई शारीरिक यातनाएं दीं एवं पृथ्वीराज चौहान को मुस्लिम बनने के लिए भी प्रताड़ित किया गया।


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कई यातनाएं सहने के बाद भी पृथ्वीराज चौहान मुहम्मद ग़ोरी की आंखों में आंखे डालकर पूरे आत्मविश्वास के साथ देखते रहे
। जिसके बाद गौरी ने उन्हें अपनी आंखे नीचे करने का भी आदेश दिया लेकिन इसका पृथ्वीराज पर तनिक भी प्रभाव नहीं पड़ा
जिसको देखकर मुहम्मद गौरी का क्रोध ओर अधिक बढ़ गया, और उसने पृथ्वीराज चौहान की आंखो में गर्म सलाखे देने का आदेश दिया। यहीं नहीं आंखे जला देने के बाद भी मुहम्मद गौरी उन पर कई जुल्म ढाता गया और अंत में पृथ्वीराज चौहान को जान से मारने का फैसला किया।


मुहम्मद ग़ोरी की पृथ्वीराज चौहान को मार देने की साजिश कामयाब होती, उससे पहले पृथ्वीराज चौहान के करीबी मित्र चंदरबदाई ने मुहम्मद ग़ोरी को पृथ्वीराज चौहान की शब्दभेदी वाण चलाने की खूबी बताई। जिसके बाद ग़ोरी हंसने लगा कि एक अंधा वाण कैसे चला सकता है, लेकिन बाद में ग़ोरी अपने दरबार में तीरंदाजी प्रतियोगिता का आयोजन करने के लिए राजी हो गया।

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पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु - Prithviraj Chauhan's Death 

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गोरी ने शब्दवेध बाण का प्रदर्शन देखना चाहा। गोरी ने अपने स्थान पर लोहे की एक मूर्ति स्थापित कर दी थी। तत्पश्चात् प्रतापसिंह ने सभा में पृथ्वीराज के हाथ में धनुष और तीर दिया। गोरी ने जब लक्ष्य भेदने का आदेश दिया, तभी पृथ्वीराज ने बाण चला दिया और वह बाण उस मूर्ति को जा लगा, जिससे मूर्ति के दो भाग हो गए। पृथ्वीराज गोरी को मारना चाहते थे लकिन इस कारण पृथ्वीराज का यह प्रयास असफल रहा।


उसके बाद क्रोधित गोरी ने पृथ्वीराज की हत्या करने का आदेश दे दिया। जहां एक मुस्लिम सैनिक ने तलवार से पृथ्वीराज की हत्या कर दी। इस प्रकार अजयमेरु ‍‌(अजमेर) में पृथ्वीराज की जीवनलीला समाप्त हो गई। अंत में, उनका अंतिम संस्कार ‍‌अजयमेरु में ही उनके छोटे भाई हरिराज के हाथों हुआ।

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हम उम्मीद करते है की आपको  ( Prithviraj Chauhan - ( prithviraj chauhan history in hindi । पृथ्वीराज चौहान इतिहास ) ) पसंद आया होगा 






Comments

  1. End of the story is wrong i.e ''uske bad krodhit Gori ne Prithviraj ko marne ka aadesh diya''

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